सुंदर कथा ११९ (श्री भक्तमाल – श्री दयाल दास जी) Sri Bhaktamal – Sri Dayaal das ji

१. श्री रामजी द्वारा पर्वत शिला उठाकर छाया देने वाली गुफा के रूप में स्थापित करना –

श्री रामस्नेही सम्प्रदाय के एक संत हुए श्री दयालदास जी महाराज । अहर्निश श्री राम नाप का जाप करते हुए वे राजस्थान के खेड़ापा क्षेत्र में विराजते थे । अपने गुरुदेव से आज्ञा लेकर वे तपस्या करने एक पहाड़ पर आसन लगाकर बैठ गए । उस क्षेत्र मे जल बहुत कम है और सूखा होने के कारण उस पहाड़ पर वृक्ष भी नही थे । तपस्या करते करते बहुत समय बीता । एक दिन तेज गर्मी पड रही थी , प्रभु रामचंद्र जी को बडी दया आयी । रामजी ने एक पहाड़ का बड़ा हिस्सा उठाकर ऐसे रख दिया कि दयालदास जी के शरीर पर छाया हो गयी । खुले पहाड़ के ऊपर रखी हुई वह पत्थर की शिला ऐसी। रखी कि वह गुफा जैसे दिखाई देने लगी । आज भी प्रभु राम द्वारा रखी उस शिला के दर्शन होते है । बहुत काल बाद जब शरीर का होश हुआ तो बड़ी विशाल शिला देखर आश्चर्य मे पड गए । प्रभु की कृपा का अनुभव करके पुनः नाम मे लीन हो गए ।

२. इंद्र द्वारा कामदेव और अप्सरा को भेजना –

श्री दयालदास जी महाराज तपस्या मे ऐसे लग गए कि इंद्र को भय हो गया । इंद्र ने सोचा ये संत कलयुग मे इतनी कठोर साधना क्यों कर रहे है ? कही इन्हें इन्द्रपद की कामना तो नही है ? उसने बहुत प्रयास किये , सिद्धियां दयालदास जी के सामने प्रकट होकर बोली – हमे स्वीकार करो । जिन सिद्धियों के लिए साधक बड़े बड़े प्रयास करते है उन सिद्धियों की ओर इन्होंने ध्यान तक नही दिया । अंत मे इंद्र ने कामदेव और स्वर्ग की एक अप्सरा को इनकी तपस्या मे विघ्न डालने भेजा । कामदेव ने अपना सम्पूर्ण बल लगाकर इनके मन मे काम उत्पन्न करने का प्रयास किया । कामदेव ने सुंदर सुगंध, भोजन पदार्थ, पुष्प लताएं सभी वस्तुओं को प्रकट किया ।

अप्सरा ने भी अपने रूप और नृत्य के द्वारा इनको आकर्षित करना चाहा । चार दिन तक उसने अपनी सम्पूर्ण कलाओं से इनको मोहित करने का प्रयास किया । उसने ऐसा नृत्या किया की उसके चरण चिन्ह भूमि पर बन गए पर दयालदास जी रामनाम मे ऐसे डूबे रहे की अप्सरा की ओर देखा तक नही । अब अप्सरा को भारी अपमान का अनुभाव हुआ । अंत मे क्रोध में भरकर बोली कि अरे ! कैसा महात्मा है ? मैने चार दिन नृत्य किया और इतना परिश्रम करके उत्तम से उत्तम श्रृंगार किया । कलयुग मे तो साधारण मल मूत्र के स्त्री पुरुष से जीव का पतन हो जाता है । मेरा अति कोमल सुंदर दिव्य शरीर है ।

आकृष्ट होते या न होते , पर एक बार मेरी ओर देख तो लेते । वापस देवराज इंद्र को जाकर क्या उत्तर दूंगी ? । एक पृथ्वी के मनुष्य को मोहित नही कर सकी । मै श्राप देती हूं की तुम्हारी नेत्र ज्योति चली जाए और तुम्हारे नेत्रो मे भयंकर वेदना हो । श्री दयालदास जी परम संत थे, चाहते तो अपने तपस्या के बल से अप्सरा को भस्म कर सकते पर इन्होंने अप्सरा पर क्रोध नही किया । श्राप को स्वीकार कर लिया । जब इनके नेत्रो मे बहुत वेदना होने लगी तब अपने गुरुदेव श्री रामदास जी को जाकर सारी घटना सुनाई ।

३. श्री रामजी की कृपा से नेत्रज्योति की प्राप्ति –

श्री गुरुदेव जी ने कहा – श्री राम जी ने सदा अपने भक्तों पर कृपा की है , उन्ही प्रभु को भक्तों की याद दिला दिलाकर करुणा भरे स्वर मे पुकारो । प्रभु स्वयं तुम्हारी इस पीड़ा को दूर करेंगे । श्री दयालदास जी महाराज ने ५२ भक्तो का समरण करके प्रभु को सुनाया । उनके द्वारा रचे इसी ग्रंथ का नाम श्री करुणासागर है । ग्रंथ पूर्ण होनेपर श्री राम जी बालरूप मे इनकी गोद मे आकर बैठ गए । इनके नेत्रो पर अपने हाथ फेरते हुए बोले – मै आपकी गोद मे बैठा हूं, मुझे देखो । रामजी के ऐसा कहते ही श्री दयालदास जी की नेत्र ज्योति पुनः प्रकट हो गयी ।

४. इंद्र ने प्रकट होकर माला गुंथी –

एक दिन भजन करते करते श्री दयालदास जी महाराज की माला का धागा टूट गया । उनके पास सुई धागा नही था । मोटा धागा आदि ढूंढने जाएंगे तो भजन का समय व्यर्थ चला जायेगा । यह देखकर देवराज इंद्र उनके पास मोटा धागा और सुई लेकर प्रकट हुए । देवराज इंद्र ने स्वयं अपने हाथ से उनकी तुलसी माला गुंथी । उस माला के आज भी दर्शन होते है ।

श्री खेड़ापा वाले सरकार जी और हमारे श्री राजेंद्रदास बाबा इन संतो की कृपा से जैसा सुना और मुझे स्मरण रहा वैसे लिखने का प्रयास किया । भूल चूक के लिए दास को क्षमा करें ।

Image Credits – Sri Ramdham Kherapa

सुंदर कथा ११९ (श्री भक्तमाल – श्री दयाल दास जी) Sri Bhaktamal – Sri Dayaal das ji&rdquo पर एक विचार;

  1. Sunil Kabra कहते हैं:

    Thank you

    On Sun, 13 Dec 2020, 14:23 श्री भक्तमाल Bhaktamal katha, wrote:

    > श्री गणेशदास कृपाप्रसाद posted: “१. श्री रामजी द्वारा पर्वत शिला उठाकर
    > छाया देने वाली गुफा के रूप में स्थापित करना -श्री रामस्नेही सम्प्रदाय के एक
    > संत हुए श्री दयालदास जी महाराज । अहर्निश श्री राम नाप का जाप करते हुए वे
    > राजस्थान के खेड़ापा क्षेत्र में विराजते थे । अपने गुरुदेव से आज्ञा ले”
    >

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